📅 5 मार्च 2025


❓ प्रश्न 1:

“भारत में न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) लोकतंत्र को मजबूत करती है या न्यायिक अतिक्रमण (Judicial Overreach) को बढ़ावा देती है? समालोचनात्मक विश्लेषण करें।” (250 शब्द)


🔍 प्रश्न का विश्लेषण:

इस प्रश्न में न्यायिक सक्रियता के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा करनी है।

  • मुख्य फोकस: लोकतंत्र पर प्रभाव
  • विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण: न्यायिक सक्रियता बनाम न्यायिक अतिक्रमण

📌 उत्तर रूपरेखा:

1️⃣ भूमिका:

  • न्यायिक सक्रियता का अर्थ और इसकी आवश्यकता
  • न्यायिक अतिक्रमण की अवधारणा

2️⃣ मुख्य भाग:

📌 🔷 न्यायिक सक्रियता के पक्ष में तर्क:
✅ मौलिक अधिकारों की रक्षा
✅ कार्यपालिका और विधायिका की जवाबदेही सुनिश्चित करना
✅ पर्यावरण संरक्षण, भ्रष्टाचार रोकथाम, सामाजिक न्याय

📌 🔷 न्यायिक अतिक्रमण के खतरे:
❌ शक्ति पृथक्करण का उल्लंघन
❌ नीति-निर्धारण में हस्तक्षेप
❌ लोकतांत्रिक संतुलन पर प्रभाव

📌 🔷 संतुलित दृष्टिकोण और सुधार के सुझाव

3️⃣ निष्कर्ष:

  • न्यायिक सक्रियता आवश्यक है, लेकिन अतिक्रमण नहीं होना चाहिए।
  • संविधान के शक्ति संतुलन सिद्धांत का पालन ज़रूरी।

📌 मॉडल उत्तर (250 शब्द):

भूमिका:
न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जिसके तहत न्यायपालिका जनहित के मामलों में सक्रिय भूमिका निभाती है। परंतु जब न्यायपालिका विधायिका और कार्यपालिका के क्षेत्र में अत्यधिक हस्तक्षेप करने लगती है, तो इसे न्यायिक अतिक्रमण (Judicial Overreach) कहा जाता है।

मुख्य भाग:
न्यायिक सक्रियता लोकतंत्र को कैसे मजबूत करती है?
1️⃣ संविधान की रक्षा: केशवानंद भारती केस (1973) में बुनियादी संरचना सिद्धांत स्थापित हुआ।
2️⃣ जनहित याचिका (PIL): गरीबों और वंचितों को न्याय दिलाने में सहायक (विशाखा केस, 1997)।
3️⃣ सरकारी निष्क्रियता पर नियंत्रण: भ्रष्टाचार विरोधी फैसले (Vineet Narain केस, 1997)।

न्यायिक अतिक्रमण के खतरे:
❌ विधायिका की शक्तियों का ह्रास (NJAC केस, 2015)।
❌ नीतिगत मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप (SC का नोटबंदी पर फैसला)।

निष्कर्ष:
लोकतंत्र में न्यायपालिका की सक्रियता आवश्यक है, लेकिन शक्ति संतुलन बना रहना चाहिए। न्यायपालिका को विधायिका और कार्यपालिका के अधिकारों का सम्मान करते हुए संविधान के अनुरूप कार्य करना चाहिए।


❓ प्रश्न 2:

“जलवायु परिवर्तन भारत के लिए एक आर्थिक और सामाजिक चुनौती है। चर्चा करें।” (250 शब्द)


🔍 प्रश्न का विश्लेषण:

इस प्रश्न में जलवायु परिवर्तन के आर्थिक और सामाजिक प्रभावों पर चर्चा करनी है।

  • मुख्य फोकस: भारत में जलवायु परिवर्तन की चुनौती
  • दृष्टिकोण: आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव + समाधान

📌 उत्तर रूपरेखा:

1️⃣ भूमिका:

  • जलवायु परिवर्तन की समस्या
  • भारत पर प्रभाव

2️⃣ मुख्य भाग:

📌 🔷 आर्थिक चुनौतियाँ:
✅ कृषि उत्पादन में गिरावट
✅ ऊर्जा क्षेत्र और उद्योगों पर प्रभाव
✅ बुनियादी ढांचे की क्षति

📌 🔷 सामाजिक चुनौतियाँ:
✅ जल संकट और स्वास्थ्य समस्याएँ
✅ आपदाओं से विस्थापन
✅ रोजगार और आजीविका पर प्रभाव

📌 🔷 समाधान और सरकार की नीतियाँ

3️⃣ निष्कर्ष:

  • जलवायु परिवर्तन केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि बहुआयामी समस्या है।
  • भारत को सतत विकास की ओर बढ़ना होगा।

📌 मॉडल उत्तर (250 शब्द):

भूमिका:
जलवायु परिवर्तन 21वीं सदी की सबसे बड़ी वैश्विक चुनौतियों में से एक है। भारत, जो एक कृषि प्रधान और विकासशील अर्थव्यवस्था है, जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर सामाजिक और आर्थिक संकटों का सामना कर रहा है।

मुख्य भाग:
📌 आर्थिक चुनौतियाँ:
1️⃣ कृषि पर प्रभाव: मानसून अनिश्चितता से उत्पादन घट रहा है (IPCC रिपोर्ट 2023)।
2️⃣ ऊर्जा संकट: जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता बढ़ी, जिससे ऊर्जा लागत बढ़ रही है।
3️⃣ विनिर्माण और पर्यटन उद्योग प्रभावित: ग्लेशियर पिघलने और समुद्री कटाव से पर्यटन में गिरावट।

📌 सामाजिक चुनौतियाँ:
1️⃣ जल संकट: NITI Aayog के अनुसार, 21 भारतीय शहर 2030 तक ‘Day Zero’ का सामना कर सकते हैं।
2️⃣ स्वास्थ्य पर प्रभाव: बढ़ता प्रदूषण, जलजनित बीमारियाँ और आपदाओं से विस्थापन।
3️⃣ पर्यावरणीय आपदाएँ: बाढ़, चक्रवात, सूखा से लाखों लोगों की आजीविका संकट में।

समाधान और नीतियाँ:

  • राष्ट्रीय अनुकूलन योजना (NAPCC)।
  • नवीकरणीय ऊर्जा और हरित विकास की दिशा में निवेश।
  • जलवायु-संवेदनशील कृषि को बढ़ावा।

निष्कर्ष:
जलवायु परिवर्तन केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं, बल्कि व्यापक आर्थिक और सामाजिक संकट का कारण भी है। भारत को दीर्घकालिक नीतियों और सतत विकास के माध्यम से इसका समाधान निकालना होगा।


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