📌 UPPSC मुख्य परीक्षा उत्तर लेखन अभ्यास

(विषय: आधुनिक भारत का इतिहास)


📝 प्रश्न 1: 1857 के विद्रोह के प्रमुख कारणों की व्याख्या करें और इसके असफलता के कारणों का विश्लेषण करें।

(मुख्य कीवर्ड: 1857 का विद्रोह, कारण, असफलता)

📜 प्रश्न में क्या पूछा गया है?

इस प्रश्न में 1857 के विद्रोह के कारणों की व्याख्या करने और इसकी असफलता के प्रमुख कारणों का विश्लेषण करने के लिए कहा गया है। इसमें विद्रोह के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य कारणों के साथ-साथ इसकी असफलता के कारणों का भी समावेश होना चाहिए।


📜 उत्तर की रूपरेखा:

1️⃣ परिचय: 1857 का विद्रोह – भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम
2️⃣ 1857 के विद्रोह के प्रमुख कारण:

  • राजनीतिक कारण: ब्रिटिश साम्राज्यवाद, हड़प नीति (Doctrine of Lapse)
  • आर्थिक कारण: भारी कर प्रणाली, पारंपरिक कारीगरी का नाश
  • सामाजिक एवं धार्मिक कारण: अंग्रेजों की नस्लीय श्रेष्ठता की भावना, सामाजिक हस्तक्षेप
  • सैन्य कारण: भारतीय सैनिकों से भेदभाव, चर्बी वाले कारतूसों का विवाद
    3️⃣ विद्रोह की असफलता के कारण:
  • नेतृत्व की कमी
  • विद्रोह का क्षेत्रीय सीमितकरण
  • ब्रिटिश सेना की संगठित रणनीति
    4️⃣ निष्कर्ष: विद्रोह का ऐतिहासिक महत्व

📝 मॉडल उत्तर (250 शब्दों में)

1857 का विद्रोह भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला संगठित विद्रोह था, जिसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है। यह विद्रोह ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों का परिणाम था।

📜 विद्रोह के प्रमुख कारण:
🔹 राजनीतिक कारण: ब्रिटिश सरकार की हड़प नीति (Doctrine of Lapse) और निरंकुश प्रशासन ने भारतीय राजाओं और जनता में असंतोष उत्पन्न किया।
🔹 आर्थिक कारण: भारी कर प्रणाली, पारंपरिक उद्योगों का विनाश, तथा किसानों की दयनीय स्थिति विद्रोह के आर्थिक आधार बने।
🔹 सामाजिक एवं धार्मिक कारण: अंग्रेजों द्वारा भारतीय परंपराओं में हस्तक्षेप, धार्मिक स्वतंत्रता में कटौती तथा नस्लीय भेदभाव से असंतोष बढ़ा।
🔹 सैन्य कारण: भारतीय सैनिकों को ब्रिटिश सेना में भेदभाव का सामना करना पड़ा। चर्बी वाले कारतूसों का विवाद विद्रोह के तात्कालिक कारणों में से एक बना।

📌 असफलता के कारण:
⚔️ विद्रोहियों के पास कोई संगठित नेतृत्व नहीं था।
⚔️ यह विद्रोह केवल कुछ क्षेत्रों तक सीमित रहा, दक्षिण भारत ने इसमें भाग नहीं लिया।
⚔️ ब्रिटिश सेना संगठित और तकनीकी रूप से सक्षम थी, जबकि विद्रोही बिखरे हुए थे।

🔎 निष्कर्ष: 1857 का विद्रोह असफल रहा, लेकिन इसने भारतीय राष्ट्रवाद को जन्म दिया और बाद में स्वतंत्रता संग्राम के लिए आधार तैयार किया।


📝 प्रश्न 2: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रारंभिक चरण (1885-1905) की विशेषताओं का वर्णन करें तथा इसे ‘मॉडरेट युग’ क्यों कहा जाता है?

(मुख्य कीवर्ड: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, प्रारंभिक चरण, मॉडरेट युग)

📜 प्रश्न में क्या पूछा गया है?

इस प्रश्न में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के प्रारंभिक चरण (1885-1905) की विशेषताओं का वर्णन करने और यह स्पष्ट करने के लिए कहा गया है कि इसे “मॉडरेट युग” क्यों कहा जाता है।


📜 उत्तर की रूपरेखा:

1️⃣ परिचय: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885), उद्देश्य
2️⃣ प्रारंभिक चरण (1885-1905) की विशेषताएँ:

  • नरमपंथी (Moderates) नेताओं का नेतृत्व
  • संवैधानिक सुधारों की मांग
  • ब्रिटिश सरकार के प्रति नरम रवैया
    3️⃣ मॉडरेट युग क्यों कहा जाता है?
  • ब्रिटिश सरकार से संवाद और याचिकाओं की राजनीति
  • स्वराज की मांग नहीं, बल्कि प्रशासन में भारतीय भागीदारी की इच्छा
  • 1905 के बाद उग्रवादी विचारधारा का उभरना
    4️⃣ निष्कर्ष: इस चरण का महत्व और आलोचना

📝 मॉडल उत्तर (250 शब्दों में)

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) की स्थापना 1885 में ए.ओ. ह्यूम की पहल पर हुई। इसके प्रारंभिक चरण (1885-1905) को “मॉडरेट युग” कहा जाता है, क्योंकि इसमें नरमपंथी (Moderates) नेताओं का वर्चस्व था, जो ब्रिटिश सरकार के साथ सुधारवादी संवाद चाहते थे।

📜 प्रारंभिक चरण की विशेषताएँ:
🔹 कांग्रेस का नेतृत्व दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, गोपालकृष्ण गोखले जैसे नरमपंथी नेताओं ने किया।
🔹 उन्होंने संवैधानिक सुधारों की मांग की, जैसे भारतीयों को उच्च प्रशासनिक पदों पर स्थान देना
🔹 इस काल में सरकार के प्रति विरोध कम और संवाद अधिक था।

📌 इसे ‘मॉडरेट युग’ क्यों कहा जाता है?
⚖️ नरमपंथियों ने ब्रिटिश सरकार से सुधारों की मांग शांतिपूर्ण तरीकों से की, जिसे “याचिका, प्रार्थना और विरोध” (Petition, Prayer & Protest) की नीति कहा जाता है।
⚖️ वे स्वराज की बजाय प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी की मांग कर रहे थे।
⚖️ 1905 के बंगाल विभाजन के बाद उग्रवादी राष्ट्रवादियों (लाल-बाल-पाल) का उभार हुआ, जिससे कांग्रेस का यह प्रारंभिक चरण समाप्त हुआ।

🔎 निष्कर्ष: नरमपंथियों की रणनीति की आलोचना की जाती है कि उन्होंने ब्रिटिश सरकार पर अधिक विश्वास किया, लेकिन उनका योगदान भारतीय राजनीतिक चेतना को विकसित करने में महत्वपूर्ण रहा।

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